2023 के चुनावी दंगल में हर एक सीट पर सिपाही मजबूत हो, इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस की तैयारियां अपने चरमोत्कर्ष पर जा चुकी हैं। कांग्रेस में चुनावी समितियों की घोषणा के बाद ये साफ है कि चुनावी कमान पूरी तरह से कमलनाथ के हाथ में हैं। तो अब स्क्रीनिंग कमिटी के गठन के बाद क्या होगा कांग्रेस का टिकट फॉर्मूला, ये देखना अहम हो जायेगा।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव काँग्रेस और बीजेपी दोनों के ही लिहाज से अहम है, ऐसे में टिकट वितरण भी काफी जटिल हो जाता है। पार्टियां केवल जिताऊ प्रत्याशी पर ही दांव लगाने के मूड में नजर आ रहीं हैं। बीजेपी में तो फार्मूला लगभग तय है, और कॉंग्रेस के समीकरण में भी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह नजर आ रहे हैं। लेकिन अब कॉंग्रेस ने मध्यप्रदेश के लिए जब स्क्रीनिंग कमेटी का ऐलान किया है तो समीकरणों में काँग्रेस आला कमान की भूमिका अहम हो जाएगी। एक एक सीट पर समिति पूरा विचार विमर्श और मंथन करेगी और हाई कमान की हरी झंडी के बाद ही टिकट फाइनल होगा।
कांग्रेस टिकट बांटने को लेकर इस बार फूंक-फूंक कर कदम रखने वाली है। प्रदेशभर में भावी उम्मीदवार और दावेदार नए-नए जतन कर रहे हैं। लेकिन एक बात तो तय है टिकट वितरण में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का बड़ा दखल होगा। एक तरफ कमलनाथ सर्वे करवा रहे हैं तो दूसरी तरफ दिग्गी अपनी दिग्विजय यात्रा में 66 सीटों के समीकरणों को समझकर आए हैं। लेकिन अब जब कांग्रेस ने समिति बना दी है तो राहुल गांधी की टीम भी अपने स्तर पर सर्वे में जुट गई है। इतने सारे सर्वे और सर्वे सर्वा जब कांग्रेस में बन गए हैं तो जो एकता कांग्रेस दिखाना चाह रही थी वो भी कहीं न कहीं अब खतरे में पड़ती नजर आ रही है।
उमंग सिंघार जैसे कांग्रेस के कद्दावरों ने तो समितियों के गठन के बाद बगावती सुर लगा हो दिए हैं। एक तरफ जहां इस बार कांग्रेस अपने नेता को तय मान रही थी, तो वहीं अब सिंघार ने आदिवासी चेहरे की मांग उठाकर कांग्रेस की राह में काटो का काम कर दिया है।
2018 में की गईं गलतियाँ करना अब महंगा साबित हो सकता है लिहाजा काँग्रेस पुरानी गलतियां दोहराने के मूड में नजर नहीं आ रही है। जिसके मद्देनजर इस बार एयर ड्रॉप के बदले काँग्रेस स्थानीय प्रत्याशियों को तरजीह देने वाली है। काँग्रेस चुनाव के 2 महीनों पहले पहली लिस्ट जारी करने के मूड में है। लेकिन कहीं न कहीं कॉंग्रेस अपने ही नेताओं में एकजुटता बड़ी चिंता बनी है। जिसे कई मौकों पर कमलनाथ भी मान चुके हैं। और ये चिंता जिस तरह समितियों के गठन के बाद सामने आईं हैं उससे ये अंदाजा लगाना ज्यादा कठिन नहीं है की जब टिकट वितरण की बारी आएगी तो कितने सुर कांग्रेस के अंदरखाने से सामने आएंगे।
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